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16)मेरी प्रयोगशाला ( यादों के झरोके से )




शीर्षक = मेरी प्रयोगशाला




उफ्फ् वो मेरा बचपन , वो मेरे बचपन के सुनहरे दिन जिनके बारे में मुझे लेखनी द्वारा संचालित की गयी इस प्रतियोगिता यादों के झरोखे के माध्यम से मुझे लिखने का मौका मिल रहा है, मैं हमेशा ही सोचता था की एक डायरी लिखू जिसमे मैं अपना बचपन अपने लेखन के माध्यम से दोबारा जी सकूँ, उस समय के हर एक लम्हें को जो मैंने जिया और अब याद बन कर रह गया है


उसे कलम और कॉपी की सहायता से उसे कोरे कागज पर ऊकेर सकूँ, चलो कागज कलम ना सही इस आधुनिक युग में मोबाइल द्वारा ही अपने अल्फाज़ो को मोबाइल में बने नोटपैड 
पर टाइप कर सके  जो की शायद  कलम और कॉपी पर लिखने से ज्यादा सरल है  बस थोड़ी बहुत समस्या है  की अगर गलती से भी इधर का उधर हो गया तो सब किये कराये पर पानी फिर सकता है,


चलिए इन सब बातों से तो आप सब अवगत ही है  अब आपको अपनी प्रयोगशाला से अवगत कराया जाए, डरिये मत वो कोई ऐसी प्रयोगशाला नहीं थी जहाँ कोई विस्फोटक पदार्थ हम बनाने की कोशिस करते थे


वो प्रयोगशाला थी शैतानी दिमाग़ में उठ रहे अच्छे अच्छे विचारों को प्रयोगो के माध्यम से, स्कूल में पढ़ाये जाने वाली चीज़ो को असलियत में समझने के लिए 


वो प्रयोगशाला मेरे घर के कोने में पड़ी टूठी फूटी एक जगह थी, जहाँ मेरे जन्म से पहले मेरे घर वाले रहते थे , जो की एक कच्ची खपरेल हुआ करती थी  बाद में उसके गिर जाने के भय से सामने की तरफ खाली पड़ी जगह पर पक्का मकान बना दिया गया  और वो खाली कर दिया गया, बाद में उस खपरेल के गिर जाने पर उसपर टीन की चादर डाल दी गयी और एक दुकान नुमा बना दी गयी  जो कुछ दिन खुली और बाद में बंद हो गयी 


और उसके बाद वो मेरी प्रयोगशाला बन गयी , सर्दी हो, बरसात हो, गर्मी की तपती दुपहरिया हो मेरा सब कुछ वही था, स्कूल जाने से पहले भी मैं उसी प्रयोगशाला में घुसा रहता कभी इसके तार उस मोटर में डाल देता तो कभी कौन सा तार प्लग में लगा देता

कभी चूना पत्थर को पानी और नौसादर के साथ मिलाकर अमोनिया बना देता,और खुश हो जाता की आखिर कार 8 वी कक्षा का प्रेक्टिकल कर दिखाया 


कभी गाड़ी तोड़ कर उसकी मोटर निकाल कर उसमे कागज का पंखा लगा कर उससे निकलती हवा का आनंद लेना, उन्ही के बीच सारी खुशियाँ सिमटी हुयी थी 


उस समय मोबाइल तो था ही नहीं था भी तो बड़ो के अलावा छोटो से बहुत दूर था

उसी के साथ साथ कागज को काट कर नयी नयी चीज़े बनाना भी मेरी उस प्रयोगशाला का एक हिस्सा थी , वो सिर्फ प्रयोगशाला नहीं बल्कि मन में चल रहे विचारों को हकीकत में बदलने की एक जगह थी  जिनमे से कुछ अंजाम तक पहुंच जाते तो कुछ अधूरे रह जाते

उसी के साथ उस प्रयोगशाला में एक चीज और बनती थी  जिसका नाम मिट्टी के बर्तन बनाना था  अपने हमउम्र दोस्तों के साथ मिलकर और उन्हे सूखने के बाद रंग कर ना और फिर उन्हे या तो गुस्सा आने पर तोड़ देना या फिर किसी को दे देना


वो प्रयोगशाला नहीं मेरे गुज़ारे हुए बचपन की एक अनमोल याद है, जहाँ मेरी  गर्मी की दुपहरिया, सर्दी की शाम  और बारिश के दिन गुज़रे थे  अपने प्रयोगो को अंजाम देते हुए , कभी कभी तो मार भी पड़ जाती थी की आखिर ऐसा क्या है उस जगह जो मुझे इतनी प्यारी थी ,लेकिन ये तो मुझे भी नहीं पता की वो जगह मुझे क्यू प्यारी थी  बस अच्छी लगती थी  वो जगह


फिर एक दिन वो जगह टूट गयी और वहाँ कमरा बन गया , और वो सिर्फ याद बन कर रह गया , आज फिर उसकी यादें ताज़ा हो गयी


ऐसी ही किसी यादगार लम्हें को आपके समक्ष लेकर जल्द हाजिर हूँगा तब तक के लिए अलविदा

यादों के झरोखे से 




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2 Comments

Gunjan Kamal

17-Dec-2022 09:09 PM

बेहतरीन याद

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Muskan khan

13-Dec-2022 05:21 PM

Well done

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